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प्रेद्धो॑ऽअग्ने दीदिहि पु॒रो नोऽज॑स्रया सू॒र्म्या᳖ यविष्ठ। त्वा शश्व॑न्त॒ऽउप॑यन्ति॒ वाजाः॑ ॥७६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रेद्ध॒ इति॒ प्रऽइ॑द्धः। अ॒ग्ने॒। दी॒दि॒हि॒। पु॒रः। नः॒। अज॑स्रया। सू॒र्म्या᳖। य॒वि॒ष्ठ॒। त्वाम्। शश्व॑न्तः। उप॑। य॒न्ति॒। वाजाः॑ ॥७६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:76


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (यविष्ठ) अत्यन्त तरुण (अग्ने) आग के समान दुःखों के विनाश करनेहारे योगीजन ! आप (पुरः) पहिले (प्रेद्धः) अच्छे तेज से प्रकाशमान हुए (अजस्रया) नाशरहित निरन्तर (सूर्म्या) ऐश्वर्य्य के प्रवाह से (नः) हम लोगों को (दीदिहि) चाहें (शश्वन्तः) निरन्तर वर्त्तमान (वाजाः) विशेष ज्ञानवाले जन (त्वाम्) आपको (उप, यन्ति) प्राप्त होवें ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - जब मनुष्य शुद्धात्मा होकर औरों का उपकार करते हैं, तब वे भी सर्वत्र उपकारयुक्त होते हैं ॥७६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(प्रेद्धः) प्रकृष्टतया प्रदीप्तः (अग्ने) अग्निरिव दुःखदाहकः योगिन् (दीदिहि) कामयस्व (पुरः) प्रथमम् (नः) अस्मान् (अजस्रया) अनुपक्षीणया (सूर्म्या) ऐश्वर्येण (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (त्वाम्) (शश्वन्तः) निरन्तरं वर्त्तमानाः (उप, यन्ति) प्राप्नुवन्तु (वाजाः) विज्ञानवन्तो जनाः ॥७६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे यविष्ठाग्ने ! त्वं पुरः प्रेद्धः सन्नजस्रया सूर्म्या नोऽस्मान् दीदिहि शश्वन्तो वाजास्त्वामुपयन्ति ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - यदा मनुष्याः शुद्धात्मानो भूत्वाऽन्यानुपकुर्वन्ति, तदा तेऽपि सर्वत्रोपकृता भवन्ति ॥७६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा माणसे पवित्र होऊन इतरांवर उपकार करतात तेव्हा ते परोपकारी म्हणून प्रसिद्ध होतात व सर्वत्र परोपकारच करतात.